kallaji rathod
हिंदुस्तान के मेवाड़ की मातृभूमि की रक्षा के लिए अनेक वीरों ने बलिदान दिया जिनमें से एक थे वीर कल्लाजी राठौड़ और उनके साथ उनके काका थे जयमाल राठौड़ युद्ध में उनकी भूमिका और इनका पराक्रम देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे क्योंकि इनका नाम इतिहास में कभी दिखाई नहीं देता है लेकिन उनके समय में सबसे ज्यादा दुश्मन डरते थे तो सिर्फ उनके नाम से दुश्मन का कपाने लगते थे वीर कल्ला जी राठौड़ का मुख्य धाम Randela में स्थित है यहां पर नवरात्रि में पहले रविवार को एक भव्य मेला लगता है और यहां इनका बहुत भव्य मंदिर भी है जहां पर लोगों द्वारा हर रविवार को पूजे जाते हैं और लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती है आज भी लोगों के दिलों में यह अमर है।
कल्लाजी राठौड़ रन्देला मुख्य धाम
राजा उदय सिंह का जब चित्तौड़गढ़ पर राज था तब कलाजी के पराक्रम से और उनके कार्य शैली से प्रभावित होकर उन्हें रन्देला गांव पर हो रहे पिमला भील के आक्रमण से बचाने के लिए और लोगो की रक्षा करने के लिए भेजा गया और और कल्लाजी राठौड़ को रंगीला गांव पर शासन करना था।
उन्होंने अपनी कूटनीति से और अपने पराक्रम से पीमला भील गढ़ टोकर को हराकर Randela गांव वासियों को उसके प्रकोप से बचाया और वहां पर शांति स्थापित की और वहां पर शासन करने लगे इसके बाद चित्तौड़गढ़ पर मुगलों ने आक्रमण कर दिया था फिर राणा उदय सिंह के बुलावे पर जी तुरंत अपने घोड़े पर सवार होकर चित्तौड़गढ़ के लिए रवाना हो गए और वहां पर कई दिनों के भयंकर युद्ध करने के बाद वीरगति को प्राप्त हुए।
कल्ला राठौड़ और जयमल राठौड़
कला राठौड़ और जयमल राठौड़ यह दोनों काका भतीजा के नाम से भी फेमस है युद्ध में इनकी काका भतीजा की जोड़ी दुश्मनों के छक्के छुड़ा देती थी सिर्फ उनके नाम से दुश्मन काटते थे अकबर की सेवा के सामने इनका पराक्रम देखकर अकबर भी घबरा जाता था महाराणा प्रताप ने जयमल को अपना सेनापति नियुक्त किया था अकबर की सेवा ने चित्तौड़ को चारों तरफ से घेर लिया था अकबर को हराने के लिए मेवाड़ी वीर किले से बाहर निकाल कर मुगलों का सामना करते थे अकबर की सेवा बहुत ज्यादा थी अकबर की सेवा ने चित्तौड़गढ़ किले को चारों तरफ से घेर लिया था ऐसा में काका भतीजा की जोड़ी चित्तौड़गढ़ के तीसरे गेट पर अपना पराक्रम दिख रही थी मुगलों की संख्या ज्यादा होने की वजह से मेवाड़ी वीरों की संख्या बहुत कम लग रही थी इसलिए सेनापति जयमल ने यह निर्णय लिया था कि हम अंतिम सांस तक लड़ेंगे मुगल और मेवाड़ी वीरों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था तभी जयमल जी को पर पर गोली लग जाती है जिससे वह चलने फिरने में असमर्थ हो जाते हैं फिर भी अपने दोनों हाथों में अपने तलवारों को लेकर अपना पराक्रम दिखा रहे थे फिर एक समय ऐसा आया की प्राप्त युद्ध भूमि में उनके पैरों की हालत बेहद खराब हो गई थी और उनसे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था उनके युद्ध करने की तीव्र इच्छा थी तभी कल्ला जी ने उनके भतीजे कल्लाजी राठौड़ ने उन्हें अपने कंधों पर बिठा लिया और उनके दोनों हाथों में तलवार दे दी अब दोनों हाथों से कालाजी भी तलवार लेकर चारभुजा धारी युद्ध भूमि में उतर गए फिर किले के चारों तरफ मुगलों की लाशें बिखरने लगी इसी तरह कहा जाता है कि इसी तरह ढाई दिनों तक वह युद्ध लड़ते रहे इसके बाद मुगलों ने धोखे से उन दोनों का सर कलम कर दिया लेकिन मुगलों को क्या पता था कि यह मेवाड़ के शेर हैं अपना सर काटने के बाद भी वह दो दिनों तक लड़ते रहे और मुगलों के लाशों के ढेर लगा दिए और इस तरह से इतिहास में अमर हो गए किसी मुगल ने कहा कि इन्हें शांत कैसे किया जाए तब किसी ने बताया कि इन पर मदिरा की छिड़काव कर दिए जाए तो यह शांत हो जाएंगे फिर क्या था उन पर मदिरा का क्षेत्र कम कर दिया और वह दोनों अपवित्र हो गए और उनके अंदर मौजूद शक्तियां भी शांत हो गई और वह अमर देवता के रूप में आज भी पूजा जाता है चित्तौड़गढ़ के तीसरे दरवाजे पर उनकी समाधि कल्लाजी राठौड़ की मंदिर आज भी मौजूद है जहां पर लोग जाकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें